विनिर्माण उद्योग: कच्चा माल, शक्ति के साधन, परिवहन व संचार के साधन, बाजार, कुशल श्रमिक, पूंजी, जलापूर्ति, जलवायु, उच्च तकनीक, सरकारी नीतियां अन्य कार्य से जुड़ी संपूर्ण जानकारी
विनिर्माण उद्योग का अर्थ प्राथमिक त्पादन से प्राप्त कच्ची सामग्री को शारीरिक अथवा यांत्रिक शाक्ति द्वारा परिचालित आंजारों की सहायता से पूर्व निर्धारित एवं नियंत्रित प्रक्रिया द्वारा किसी इच्छित रूप, आकार या विशेष गुणधर्म वाली वस्तुओं में बदलना है । विनिर्माण उद्योग के नाम से अक्सर यह भ्रांति हो जत। है कि यह केवल वृहद स्तर का उद्योग है। परन्तु वास्तव में ऐसा नही है इस उद्योग को किसी भी स्तर पर आरम्म किया जा सकता है। इस अर्थ में अति साधारण वस्तुओं यथा मिट्टी से मिट्टी के बर्तन व खिलौनें बनाने से लेकर भारी से भारी निर्मित वस्तुए जैसे बड़ी मशीनें, जलयान, भारी रसायन बनाने सम्बन्धी आदि सभी उद्योग सम्मिलित हैं। निर्णाण उद्योग में प्रयों किये जाने वाले पदार्थ प्राकृति दशा में कच्चा माल कहलाते हैं जैसे धात अयरुक लकडी, कपास आदि। ये असंशोधित पदार्थ भी होते है जैसे -इस्पात, जिससे यंत्र व क-पुर्जे बनाये जात है। चिरी हुरी लकड़ी जिससे कागजी लुग्दी बनाई जाती है। कपास का धागा जिससे वर्त्र बुना जाता है। किसी भी देश में निर्माण उद्योग के विकास के साथ ही उसकी राष्ट्रीय आय बढ़ती है। वह देश विकसित होता जाता है। औौद्योगिक विकास देश की आर्थिक सम्पन्नता का मापदण्ड होता है। विश्व के सभी विकसित देश जैसे - संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, जर्मनी, ग्रेट ब्रिटेन आटि औद्योगिक दृष्टि से विकसित देश हैं।
उचोगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक
उद्योगों की स्थापना केवल उन्हीं स्थानों पर हो सकती हैं. जहाँ उनके विकास के लिए आवश्यक भौगोलिक दशायें उपल्ध हों। उद्योगों की अवस्थिति व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को आरेख द्वारा दर्शाया गया हैं। उद्योगों की अवस्थिति को निम्न कारक प्रभावित करते हैं :
(1) कच्वा गाल : किसी भी उद्योग के विकास के लिए कच्चा माल सुगमतापूर्वक, पर्याप्त व स्ती दर पर प्राप्त होना चाहिए। अत: अधिकतर उद्योग खानों, वनों, कृषि क्षेत्रों अथवा समुद्र तटीय क्षेत्रों के निकट ही अवस्थित हैं। जिन उद्योगों का कच्वा माल भारी, स्ता्त्ता् सस्ता व जिनमें निर्माण के दौरान वजन कम होता है, उनमें इसी तरह की प्रवृति पायी जाती हैं ऐसा नहीं होनेे पर उनका परिवहन व्य बढ़ जायेगा । अधिकांश लौह-इस्पात उद्योग गोयले की खानों के पास, लोहे की खानों के पास अथवा कोयला व तोह अयस्क की खानों के बीच किसी अनुकूल स्थान पर स्थापित किया जाता है। फल, सब्जियां दूध, मछलियाँ जैसे शीघ्र खराब होने वाले कच्चे माल पर आधारित उद्योगों को कच्चे माल के स्त्रोंत के समीप ही स्थापित किया जाता है। लेकिन कुछ वस्तुएँ ऐसी भी होती है जिनमें निर्माण प्रक्रिया में भार में कमी नही होती है। उदाहरण के लिए एक टन रूई से एक टन सूत का निर्माण होता है। इसलिए जापान वह ब्रिटेन में सूती वस्त्र उद्योग के लिए कपास संयुक्त राज्य अमेरिका, मिश्र व भारत से आयात की जाती है। जापान जैसे कुछ देश ऐसे भी है, जहाँ उद्योगों के विकास में कच्चे माल का विशेष महत्व नहीं है। जापान के अधिकांश उद्योग आयातित कच्चे माल पर ही आधारित है।
(2) शक्ति के साधन: शक्ति के साधन का सुचारू एवं सुगम रूप में मिलना उद्योगों के केन्द्रीयकरण एवं विकास के लिए आवश्यक है। शक्ति के प्रमुख साधन कोयला, पेट्रोलियम, जल विदुतु, प्राकृति गैस और परमाणु ऊर्जा। लौह इस्पात उद्योग जैसे भारी उद्योग कोयले से शक्ति प्राप्त करते है। ये कोयले की खानों के समीप ही स्थापित किये जाते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस व यूरोपीय देशों के अधिकांश लौह इस्पात केन्द्र कोयला खदानों के पास ही अवस्थित हैं । भारत के प्रमुख लौह इस्पात केन्द्र दामोदर घाटी में झारिया व रानीगंज कोयला खदानों के निकट स्थापित है। एल्यूमिनियम उद्योग स्ते जल विद्युत उत्पादक क्षेत्रों में ही स्थापित किये गये हैं। जल विद्धुत का तारों के माध्यम से सम्प्रेषण तथा पेट्रोजियम व प्राकतिक गैस का पाईप लाइन द्वारा आसानी से परिवहन की सुविधा के कारण उद्योगों का विकेन्द्रीकरण हुआ है । यही कारण है। कि पेट्टोलियम व प्राकतिक गैस उत्पादक प्रदेश बडे औद्योगिक कष्षेतर नहीं बन पाये हैं।
(3) परिवहन व संचार के साधन : कच्चे माल को कारखानों तक लाने तथा तैयार माल के बाजार तक पहेँचाने के लिए तीव्र व सक्षम परिवहन सुविधाएँ औद्योगिक विकास के लिए अत्यावश्यक है। परिवहन लागत का औद्योगिक इकाई की अवस्थिति में महत्वपूर्ण स्थान होता है। पश्चिमी यूरोप व उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भागों में विकसित परिवहन तंत्र के जाल की वजह से सदैव इन क्षेत्रों में उद्योगों का जभाव है (एशिया, अफ्रीका, व दक्षिणी अमेरिका के अधिकांश देशों में परिवहन के साधनों की कमी के कारण औद्योगिक विकास कम हुआ है। परिवहन के साधनों की भाँति संचार के साधन जैसे डाक, तार, टेलिफोन, ई-मेल तथा इन्टरनेट आदि भी औद्योगिक विकास में सहायक है। इनसे उद्योग सम्ब्धी सूचनाओं का आसानी से आदन-प्रदान हो जाता है।
(4) बाजार : उद्योगों की स्थापना में सबसे प्रमुख कारक उसके द्वासा उत्पादित माल के लिए बाजार का उपलब्ध होना जरूरी है । बाजार से तात्पर्य उस क्षेत्र में तैयार वस्तओं की माँग एवं वहाँ के निवासियों की क्रय शक्ति है। विकसित देशों के लोगों की क्रय शाक्ति अधिक होना तथा सघन बसे होने के कारण वुहद वैशिवक बाजार है। दक्षिणी व दक्षिणी-पूर्वी एशिया के सघन बसे प्रदेश भी वुहद बाजार उपलब्ध कराते है।
(5) कशल श्रमिक : यद्यपि निर्माण-उद्योगों में तेजी से यंत्रीकरण और स्वचालन की वृद्विहोती जा रही है, फिर भी उद्योगों में अब भी कशल श्रमिकों की अधिक आवश्यकता होती है। कम्पूटर नियंत्रण प्रणाली से युक्त स्व-चालित कारखाने जिनें मशीनों को सोचने के लिए विकसित किया गया है, पूरे विश्व में नजर आने लगी है।
(6) पूँजी : किसी भी उद्योग की स्थापना एवं संचालन के लिए पर्याप्त पूँजी होना अनिवार्य है। कारखाना लगाने, मशीने व कच्चा माल खरीदने और मजदूरों को वेतन देने के लिए पूँजी की आवश्यकता होती है । विकासशील देशों में पूँजी की कमी के कारण आशातीत औद्योगिक विकास नहीं हो पाया है।
(7) जलापूर्ति: किसी निर्माण उद्योग की अवस्थिति पर जलापूर्ति का भी प्रभाव होता है। लौह इस्पात उद्योग, वस्त्र उद्योग, रासायनिक उद्योग, कागज उद्योग, चमड़ा उद्योग, आणविक विद्युत-गृह आदि कुछ ऐसे उद्योग हैं जो जल के बिना विकसित नहीं हो सकते हैं। अतः ऐसे उद्योग किसी स्थायी जलस्त्रोत के निकट ही स्थापित किये जाते हैं।
(8)जलवायु : उपयुक्त एवं स्वास्थयप्रद जलवायु से श्रभिकों की कार्य क्षमता बढ़ जाती है। सूती वस्त्र उद्योग के लिए आर्र जलवायु की आवश्यकता होती है। सिनेमा उद्योग के लिए वर्ष भर मेघ रहित आकाश व सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है। उपयुक्त जलवायु के कारण ही मुम्बई व कैलीफोर्निया में सिनेमा उद्योग तेजी से पनपा है।
(9) उच्च तकनीक : उच्च तकनीक के द्वारा ही विनिर्माण की गुणवत्ता को नियंत्रित करने, अपशिष्टों के निस्तारण तथा प्रदूषण के विरूद्धसंर्ष सम्भव है आजकल उद्योगों की स्थापना के साथ ही साथ पर्यावरण संरक्षण के पहलुओं पर ध्यान देना अत्यावश्यक है। ऐसा उच्च तकनीकी ज्ञान व युक्तियों से ही सम्भव है।
(10) सरकारी नीतियाँ : किसी देश की सरकार की नीतियाँ भी उद्योगों के विकास को प्रभावित करती है। यदि किसी देश की सरकार वहाँ उद्यागों का राष्ट्रीयकरण कर रही है तो विदेशी कम्पनियाँ वहाँ उद्योग नहीं लगा पायेगी । इसके विपरीत यदि टैक्स में छूट अथवा अन्य सुविधाएं दी जाये तो उद्योगों के विकास की संभावना बढ़ जाती है।
(11) अन्य कारक : स्ती भूमि, राजनैतिक स्थिरता, बैकिंग व बीमा की सुविधा आदि अन्य महत्वपूर्ण कारक हैं ।
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