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महाराणा सांगा द्वारा जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी: उत्तराधिकारी के लिए संघर्ष, गुजरात के सुल्तान के साथ संघर्ष, दिल्ली सल्तनत के साथ संघर्ष, मालवा के साथ संबंध, आदि संपूर्ण जानकारी

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सांगा अपने पिता महाराणा रायमल की मृत्यु के बाद 1509 ई. में 27 वर्ष की आयु में मेवाड़ का शासक बना | मेवाड़ के महाराणाओं में वह सबसे अधिक प्रतापी योद्दा था ।  उतराधिकार के लिए संघर्ष - रायमल के जीवनकाल में ही सत्ता के लिएं पुत्रों के बीच आपसी संघर्ष प्रारम्भ हो गया | कहा जाता है कि एक बार कुंवर पृथ्वीराज, जयमल और संग्रामसिंह ने। अपनी-अपनी जन्मपत्रियाँ एक ज्योतिषी को दिखलाई। उन्हें देखकर उसने कहा कि ग्रह तो पुथ्वीराज और जयमल के भी अच्छे हैं परन्तु राजयोग संग्रामसिंह के पक्ष में होने के कारण मेवाड़ का स्वामी वही होगा। यह सुनते ही दोनों भाई संग्रामसिंह पर टूट पड़े। पृथ्वीराज ने हूल मारी जिसे संग्रामसिंह की एक आंख फूट गई। इस समय तो सांरगदेव (महाराणा रायमल के चाचा) ने बीच-बचाव कर किसी तरह उन्हें शांत किया, किन्तु दिनों-दिन कुंवरों में विरोध का 'भाव बढ़ता ही गया। सारंगदेव ने उन्हें समझाया कि ज्योतिषी के कथन पर विश्वास कर तुम्हें। आपस में संघर्ष नहीं करना चाहिये ।  इस समय सांगा अपने भाइयों के डर से श्रीनगर (अजमेर) के कर्मचन्द पंवार के पास अज्ञातवास बिता रहा था। रायमल ने उसे बुल

पृथ्वीराज चौहान से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी: पृथ्वीराज चौहान की विजय, संयोगिता की कहानी, मोहम्मद गौरी के बीच संघर्ष, पराजय के कारण, मूल्यांकन, आदि की संपूर्ण जानकारी

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मुहम्मद गौरी के भारत पर आक्रमणों के समय दिल्ली व अजमेर पर पुथ्वीराज चौहान (तृतीय) का शासन था जो इतिहास में ‘रयपिथौरा' के नाम से प्रसिद्ध है । पुथ्वीराज का जन्म 1166 ई. में हुआ था । वह अपने पिता सोमेश्वर की मुत्यु के बाद मात्र 11 वर्ष की आयु में चौहान साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना।| पुथ्वीराज की माँ कर्पूरदेवी कुशल राजनीतिज्ञा थी । इस कारण उसने प्रधानमंत्री कदम्बवास और सेनापति भुवनमल्ल की सहायता से राज्य का शासन आसानी से संभाल लिया । एक वर्ष तक माता के संरक्षण में रहने के बाद 1178ई. में पृथ्वीराज ने शासन की बागडोर अपने हाथों में ले ली । शीष्र ही उसने उच्च पदों पर अपने विश्वसनीय अधिकारियों की नियुक्ति कर विजय नीति को क्रियान्वित करने का बीड़ा उठाया। इतिहासकार गोपीनाथ शर्मा के अनुसार इेस विजय नीति के तीन पक्ष थे - स्वजनों के विरोध से मुक्ति पाना, पड़ोसी राज्यों का दमन तथा विदेशी शत्रुओं का मुकाबला।  पृथ्वीराज चौहान की विजये- पुथ्वीराज को अल्पव्यस्क देख कर उसके चाचा अपरगांग्य ने शासक बनने के लिए विद्रोह कर दिया | पुथ्वीराज ने उसे परार्त कर उसकी हत्या कर डाली किन्तु विरोधी