Posts

Showing posts with the label Geography Syllabus

चम्बल बेसिन पर विस्तृत भौगोलिक निबन्ध - Detailed Geographical Essay on Chambal Basin

Image
चम्बल बेसिन प्रदेश-इस प्रदेश का विस्तार 23°50' उत्तर से 27°50' उत्तर तथा 75°15' पूर्व से 78°15' पूर्व के बीच है। इसका कुल क्षेत्रफल 50,026 वर्ग किलोमीटर तथा जनसंख्या 98.12 लाख है। इस प्रकार यह 217 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर का घनत्व परिलक्षित करता है । इसके अन्तर्गत राजस्थान के भरतपुर, धौलपुर, सवाईमाधोपुर,बूंदी,कोटा, बारां, झालावाड़ तथा टोंक जिले सम्मिलित है। चम्बल नदी यमुना की एक प्रमुख सहायक नदी है,जो विन्ध्ययन पठार के उत्तरी पश्चिमी लोब तथा अरावली पर्वत के मध्य जलोढ़ संरचना से होकर प्रवाहित होती है। इसलिए इस प्रदेश को चम्बल बेसिन का नाम दिया जाता है। चम्बल बेसिन प्रदेश का भौतिक भू-दृश्य धरातल - चम्बल घाटी की स्थलाकृतियां पहाड़ियों और पठारों से निर्मित है। इसकी सम्पूर्ण घाटी में नवीन कांपीय जमाव पाये जाते हैं। इस प्रदेश में बाढ़ के मैदान,नदी कागार, बीहड़ व अन्त.सरिता आदि स्थलाकृतियां पाई जाती हैं जो इस प्रदेश में अच्छी तरह से विकसित है। कोटा, बूंदी, टोंक, सवाई माधोपुर और धौलपुर आदि जिलों में बीहड़ों से प्रभावित क्षेत्र लगभग 4,500 वर्ग किलोमीटर है। इन बीहड़ों का निर

राजस्थान में पशुधन के विकास की समस्याएँ -इसके समाधान के सुझाव

Image
पशु-सम्पदा की दृष्टि से राजस्थान भारत का एक प्रमुख एवं सम्पन्न राज्य है। वहाँ भारत के कुल पशुधन का लगभग 11.2% भाग है । जहाँ 1951 में राजस्थान में पशुओं की कुल संख्या 255 लाख के लगभग थी,वह 1997 की पशुगणना के अनुसार 546.7 लाख हो गई। 2003 की पशु संगणना के अनुसार राज्य में पशुओं की संख्या 491.4 लाख आँकी गई है। इस प्रकार 1997-2003 की अवधि में पशुओं की संख्या में 55.1 लाख की कमी हुई। पशुपालन कृषि के सहायक उद्योग के रूप में न केवल कृषकों को पूर्ण रोजगार में मदद करता है वरन् साथ ही उन्हें सूखे एवं प्राकृतिक विपदाओं के समय पशुपालन से आय अर्जित कर जीवनयापन का अवसर प्रदान करता है। राजस्थान में पशुपालन का महत्त्व कृषि एवं पशुपालन एक-दूसरे पर आश्रित है। राजस्थान के पश्चिमी रेगिस्तान वाले शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों के लोगों का जहाँ यह जीवनयापन का साधन है, वहीं पशुपालन उनकी उदरपूर्ति का साधन ही नहीं रोजगार का आधार और आय का स्रोत भी है। राजस्थान में पशुधन का महत्त्व निम्न तथ्यों से परिलक्षित होता है (1) कषि का आधार - खेतों में हल चलाने व खाद की दृष्टि से भी पशुधन का विशेष महत्त्व है। राजस्थान मे

इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना का विवरण,राजस्थान नहर या इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना पर एक संक्षिप्त

Image
इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना (Indira Gandhi Canal Pration हटिरा गाँधी नहर परियोजना - (राजस्थान नहर) विश्व की सबसे बड़ी नहर प्रणाली है सदियों से वीरान पड़े रेगिस्तान के एक बहुत बड़े भू-भाग को हरे-भरे लहलहाते खेतों परिवर्तित करने का सपना संजोया है । बूंद-बूंद के लिए तरसती प्यासी रेगिस्तान की भमिकी नहर के जल से सिंचित करने का यह अति साहसिक मानव प्रयास है । इन्दिरा गाँधी नया परियोजना जिस भू-भाग पर बनी है वह भू-भाग वास्तव में उपजाऊ भूमि है,लेकिन यह जल के अभाव में बेकार पड़ा है। एक समय था जब इस क्षेत्र में सरस्वती नदी बहा करती थी और यह क्षेत्र सभ्यता व संस्कृति की दृष्टि से काफी उन्नत था। ऐसा माना जाता है कि सरस्वती नदी के इन्हीं किनारों पर वेदों की रचना की गई। इस क्षेत्र में विकास के लिए सन् 1951 में केन्द्रीय जल तथा विद्युत आयोग द्वारा प्रथम सर्वेक्षण किया गया। सन् 1954 और 1956 में स्वयं राजस्थान सरकार ने इस क्षेत्र का सर्वेक्षण किया। इन सर्वेक्षणों के आधार पर सन् 1957 में प्रारम्भिक प्रतिवेदन तैयार किया गया और 31 मार्च,1958 को इस परियोजना पर औपचारिक रूप से कार्य आरम्भ हुआ। 31 मार्च, 1958 को

राजस्थान की ग्रीष्म ऋतु, शीत ऋतु व वर्षा ऋतु की दशाओं का वर्णन - in hindi

Image
किसी भू-भाग पर लम्बी अवधि के दौरान विभिन्न समयों में विविध मौसमों की औसत अवस्था उस भू-भाग की जलवायु कहलाती है। मौसम का तात्पर्य मुख्यतया छोटी अवधि, जैसे एक दिन, एक सप्ताह, एक माह अथवा इससे कुछ अधिक जबकि जलवायु एक लम्बी अवधि के दौरान किए गए अनुवीक्षणों के द्वारा निर्धारित दशाओं के औसत के साथ संबंधित है । जलवायु के अध्ययन में कई तत्त्व, जैसे तापमान, दबाव, आर्द्रता, वर्षा, वायुवेग, धूप की अवधि और कई अन्य कम महत्वपूर्ण तत्त्वों को शामिल किया जाता है। राजस्थान की जलवायु को नियन्त्रित करने वाले कारकों में अक्षांशीय स्थिति, जल से सापेक्षिक स्थिति, पर्वतीय अवरोध, ऊँचाई, प्रचलित हवाएँ तथा महाद्वीपीयता आदि महत्त्वपूर्ण कारक हैं। राजस्थान की जलवायु का अध्ययन करने से पूर्व निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है (i) राजस्थान राज्य में अरावली पर्वत श्रृंखला दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व में विस्तृत है। राजस्थान के दक्षिणी भागों से होकर कर्क रेखा गुजरती है। (ii) राजस्थान की स्थिति 23°3' व 30°12' उत्तरी अक्षांशों में है। इन्हीं अक्षांशों में उत्तरी अरेबिया, साइबेरिया और मिस्र का कुछ

राजस्थान में सूती वस्त्र उद्योग का विकास,राज्य में सूती वस्त्र उद्योग के प्रमुख कारखाने - Full Detail

Image
राजस्थान में निर्माण उद्योगों में सूती वस्त्र उद्योग सबसे प्राचीन एवं संगठित उद्योग है। यह उद्योग राज्य में ग्रामीण व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराने वाला प्रमुख उद्योग है। इस उद्योग में संलग्न श्रमिकों की संख्या, उत्पादित पक्के माल का मूल्य और विदेशी व्यापार की दृष्टि से यह उद्योग राजस्थान के अन्य बड़े पैमाने के उद्योगों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। राजस्थान में सूती वस्त्र उद्योग का विकास - राज्य में सर्वप्रथम सूती वस्त्र कारखाना दी कृष्णा मिल्स लिमिटेड के नाम से सन 1889 में देशभक्त सेठ दामोदर दास व्यास ने ब्यावर (अजमेर) में स्थापित किया । ब्यावर में ही 1906 में एडवर्ड मिल्स लिमिटेड के नाम से दूसरी तथा 1955 में श्री महालक्ष्मी मिल्स लिमिटेड के नाम से तीसरी सूती वस्त्र मिल की स्थापना की गई। इसके पश्चात् सन् 1938 में भीलवाड़ा में मेवाड़ टेक्सटाइल्स मिल्स,1942 में पाली में महाराजा उम्मेदसिंह मिल्स,सन् 1946 में गंगानगर में सार्दुल टेक्सटाइल्स लिमिटेड,सन् 1956 में कोटा टेक्सटाइल्स, सन 1960 में भीलवाड़ा में स्पिनिंग एण्ड वीविंग मिल्स व 1968 में राजस्थान टेक्सटाइल्स मिल्स, भवानी मण्डी मे

राजस्थान के औद्योगिक विकास में आने वाली बाधाओं/समस्याओं का सा देते हए राज्य में औद्योगिक विकास की संभावनाओं का आंकलन

Image
राजस्थान के औद्योगिक विकास में बाधाएँ। राजस्थान प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण है। यहाँ अनेक प्रकार के कृषिजन्य पदार्थ तथा खनिज पदार्थ पाए जाते हैं। पशुधन बड़ी संख्या में है,पर्याप्त जनसंख्या है, पूँजी भी पिछड़ेपन के निम्नलिखित कारण हैंलिपल मात्रा में है लेकिन फिर भी राजस्थान राज्य औद्योगिक दृष्टि से पिछड़ा है। इसके (1) स्थलाकृति - राजस्थान का दो-तिहाई भाग शुष्क व अर्द्धशुष्क है । इस भू-भाग में लगभग एक-तिहाई जनसंख्या निवास करती है। मध्य का विस्तृत क्षेत्र अरावली श्रेणियों से घिरा होने के कारण उद्योगों की स्थापना में बाधक है। (2) जल का अभाव - औद्योगिक क्रियाओं के लिए स्वच्छ व पर्याप्त मात्रा में जल की आपूर्ति होना आवश्यक है। राजस्थान एक शुष्क प्रदेश है जहाँ वर्षा का औसत बहुत कम है। तथा नित्यवाही नदियों का अभाव है। अकालों का प्रकोप हमेशा बना रहता है। पश्चिमी राजस्थान में पानी की कमी के कारण उद्योगों की स्थापना व विकास में कठिनाई आती है। अनेक क्षेत्रों में पीने का पानी भी बहुत मुश्किल से उपलब्ध हो पाता है। अतः इन क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना व उनके विकास में कठिनाइयाँ आती हैं। (3)

राजस्थान का उत्तर- दक्षिणी-पूर्वी पठार लावा प्रदेश अथवा हाड़ौती का पठार आदि से जुड़ी संपूर्ण जानकारी

Image
उत्तर- दक्षिणी-पूर्वी पठार लावा प्रदेश अथवा हाड़ौती का पठार - राजस्थान का दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्र एक सुनिश्चित भौगोलिक इकाई है जिसे हाड़ोती के पठार' के नाम से जाना जाता है। इसके अन्तर्गत कोटा, बारां, बूंदी व झालावाड़ जिला शामिल किया गया है । इसका विस्तार 23°57' से 25°27' उत्तरी अक्षांश एवं 75°15 से 77°75’ पूर्वी देशान्तर तक पाया जाता है । यह सम्पूर्ण प्रदेश 24,185 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है। इस प्रदेश की पूर्वी-दक्षिणी एवं दक्षिणी-पश्चिमी सीमाएँ मध्य प्रदेश राज्य से लती हैं जबकि उत्तरी एवं उत्तरी-पश्चिमी सीमाएँ क्रमश:सवाई माधोपर.टोंक,भीलवाड़ा एवं तौडगढ़ जिलों की सीमाओं से संयुक्त है । विस्तृत भौगोलिक अध्ययन की दृष्टि से हाड़ौती पठार का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है- 1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि - यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हाडौती के पठार के तिहास ने इस प्रदेश के भौगोलिक स्वरूप का निर्धारण किया है। वस्तुतः इस प्रदेश में तिहास तथा भूगोल एकाकार हो गये हैं जिसके फलस्वरूप यह प्रदेश राजस्थान का एक आदर्श भौगोलिक प्रदेश बन गया है। इसमें शामिल भूतपूर्व तीनों रा