चम्बल बेसिन पर विस्तृत भौगोलिक निबन्ध - Detailed Geographical Essay on Chambal Basin


चम्बल बेसिन प्रदेश-इस प्रदेश का विस्तार 23°50' उत्तर से 27°50' उत्तर तथा 75°15' पूर्व से 78°15' पूर्व के बीच है। इसका कुल क्षेत्रफल 50,026 वर्ग किलोमीटर तथा जनसंख्या 98.12 लाख है। इस प्रकार यह 217 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर का घनत्व परिलक्षित करता है । इसके अन्तर्गत राजस्थान के भरतपुर, धौलपुर, सवाईमाधोपुर,बूंदी,कोटा, बारां, झालावाड़ तथा टोंक जिले सम्मिलित है। चम्बल नदी यमुना की एक प्रमुख सहायक नदी है,जो विन्ध्ययन पठार के उत्तरी पश्चिमी लोब तथा अरावली पर्वत के मध्य जलोढ़ संरचना से होकर प्रवाहित होती है। इसलिए इस प्रदेश को चम्बल बेसिन का नाम दिया जाता है।





चम्बल बेसिन पर विस्तृत भौगोलिक निबन्ध




चम्बल बेसिन प्रदेश का भौतिक भू-दृश्य





धरातल - चम्बल घाटी की स्थलाकृतियां पहाड़ियों और पठारों से निर्मित है। इसकी सम्पूर्ण घाटी में नवीन कांपीय जमाव पाये जाते हैं। इस प्रदेश में बाढ़ के मैदान,नदी कागार, बीहड़ व अन्त.सरिता आदि स्थलाकृतियां पाई जाती हैं जो इस प्रदेश में अच्छी तरह से विकसित है। कोटा, बूंदी, टोंक, सवाई माधोपुर और धौलपुर आदि जिलों में बीहड़ों से प्रभावित क्षेत्र लगभग 4,500 वर्ग किलोमीटर है। इन बीहड़ों का निर्माण सम्भवतः पुनर्योवन के द्वारा हुआ होगा लेकिन ये भूमि के दुरुपयोग के कारण और भी गम्भीर बन गये हैं। इस प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी भागों में कोटा अथवा हाड़ौती उच्च भूमि की स्थलाकृतियां जो विन्ध्यन कागार भूमियों की ऊँचाई 350 मीटर से 550 मीटर के बीच हैं। चम्बल और इसकी सहायक नदियां जैसे काली सिन्ध और पार्वती ने कोटा में एक त्रिकोणमयी कांपीय बेसिन का निर्माण किया है।





जलवायु - इस प्रदेश में आर्द्र जलवायु की दशाएँ मिलती हैं। वर्षा की मात्रा 60 सेन्टीमीटर से 100 सेन्टीमीटर के बीच है। इस प्रदेश के उत्तरी-पूर्वी तथा मध्य के भाग 60-80 सेन्टीमीटर वर्षा प्राप्त करते हैं जबकि दक्षिणी भागों में वर्षा 80 सेन्टीमीटर से अधिक होती है। इस प्रकार की जलवायु में ग्रीष्मऋतु के तापमान ऊँचे होते हैं । औसत तापमान ग्रीष्म ऋतु में 32° सेल्शियस से लेकर 34° सेल्शियस तथा शीत ऋतु में 14° सेल्शियस से 17° सेल्शियस तक रहते हैं। शीत ऋतु में कुछ वर्षा चक्रवातों के द्वारा हो जाती है।





वनस्पति - वर्षा की मात्रा पर्याप्त होने के कारण इस प्रदेश में मुख्यतः शुष्क सागवान तथा शुष्क पतझड़ के वन मिलते हैं। इस प्रदेश की वनस्पति में यथेष्ठ विविधताएँ पाई जाती हैं । सामान्य रूप से मिलने वाले वृक्ष धोकड़ा, आम,गूलर,जामुन,बबूल,बरगद आदि हैं। कुछ उपयुक्त स्थानों में जहां वर्षा और मिट्टायाँ अच्छी हैं वहां सागवान के वृक्ष भी पाये जाते हैं।





मिट्टियाँ - इस प्रदेश में कछारी मिट्टी भरतपुर, धौलपुर, सवाईमाधोपुर तथा टोंक जिलों के भागों में मिलती है। यह लाल रंग की होती है । इसमें चूना फास्फोरस अम्ल वहूमस की कमी पाई जाती है । लाल-पीली मिट्टी सवाई माधोपुर में,मध्यम काली मिट्टी झालावाड़,बूंदी,कोटा के क्षेत्रों में मिलती है । सामान्यतया ये सभी मिट्टियां कृषि कार्यों के लिए उपयुक्त होती है।





खनिज - इस प्रदेश में खनिज पदार्थों की संख्या तथा किस्में अधिक हैं परन्तु गुण एवं मात्रा की दृष्टि से कांच बालुका, चीनी मृतिका चूने का पत्थर ही अधिक महत्वपूर्ण है। कांच बालूका के जमाव जगजीवनपुरा हाड़ौती (धौलपुर में ऐलानपुर, नारायणपुर, नरौली टववारा, सापोतरा (सवाई माधोपुर) में कुण्डी (कोटा) में तथा बारोदिया (बूंदी) में मिलते हैं। धौलपुर में काच के कारखाने स्थापित है जबकि बंदी और सवाईमाधोपुर में कांच उद्योग की स्थापना की सम्भावनाएँ हैं।





चम्बल बेसिन प्रदेश का सांस्कृतिक भूदृश्य





जनसंख्या - चम्बल बेसिन की जनसंख्या 2001 जनगणना के अनुसार 98.12 लाख है। और जनसंख्या का घनत्व 217वितरण भरतपुर व धौलपुर राजभार जनसंख्या का घनत्व 217 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर है। जनसंख्या का सामान्य तरण भरतपुर व धौलपर जिलों में सर्वाधिक है फिर बंदी तक यह वितरण कम होते-होते इस





प्रदेश का न्यनतम रह जाता है पुनः कोटा में अधिक, फिर झालावाड़ में कम दतिया है। इस प्रकार जनसंख्या का न्यूनतम घनत्व 168 टोंक जिले में तथा अधिकतमगत 100 वर्षों की अवधि में सबसे अधिक वृद्धिदर 361.14 प्रतिशत जिले में तथा न्यूनतम 157.12 धौलपुर जिले में आलेखित है। गत दशाब्टी 100 झालावाड़ जिले में न्यूनतम वृद्धि दर 23.34 प्रतिशत तथा कोटा जिले में अधिकतर 28.52 प्रतिशत रिकार्ड की गई है । इस प्रदेश में स्त्री पुरुष अनुपात-न्यूनतम 828 धौला में तथा अधिकतम 936 टोंक में पाया गया है।





चम्बल बेसिन में अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है लेकिन इस ग्रामीण जनसंख्या प्रतिशत (84) राजस्थान के औसत ग्रामीण प्रतिशत (79) से अधिक गांव अधिकतर इस क्षेत्र में 500-2000 की जनसंख्या के आकार के मिलते हैं जो दस कुल गांवों का 49 प्रतिशत परिलक्षित करते हैं। गांवों के वितरण पर जल की सलपाता आकार तथा उपजाऊ मिट्टी की उपस्थिति का प्रभाव अत्यधिक परिलक्षित होता है। क्षेत्र में गांव अक्सर 400 की जनसंख्या वाले मिलते हैं जबकि करौली पठार में 500 वाले गांव,मालपुरा उच्च भूमि प्रदेश में 700 जनसंख्या वाले गांव दृष्टिगत होते हैं।





चम्बल बेसिन प्रदेश में कुल 57 नगर व शहर हैं जिनमें से अधिकांश कोटा सवाई माधोपुर व भरतपुर जिलों में स्थित है । कोटा में 11 सवाई माधोपुर में 10 तथा भरतपर में 10 नगर पाये जाते हैं । प्रथम श्रेणी के नगरीय केन्द्र कोटा व भरतपुर एवं द्वितीय श्रेणी के टोंकव सवाई माधोपुर तथा शेष अधिकांश तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के नगर हैं। छठी श्रेणी का नगर समग्र राज्य में केवल एक इन्द्रगढ़ है । वह इस प्रदेश के कोटा जिले में स्थित है। इस प्रदेश की जनसंख्या का नगरीय औसत (16 प्रतिशत) राज्य के नगरीय औसत 21 प्रतिशत से कम है।





चम्बल बेसिन प्रदेश का आर्थिक परिदृश्य - यह प्रदेश मुख्यतया कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था वाला प्रदेश है जहां कुल कार्यरत जनसंख्या का 83 प्रतिशत कृषि कार्यों में संलग्न है। यहां खाद्यान्न फसलों के अन्तर्गत कुल फसली क्षेत्र का लगभग 86 प्रतिशत है लेकिन प्रति हैक्टेयर उत्पादन राज्य के औसत प्रति हैक्टेयर उत्पादन से लगभग 20 प्रतिशत कम है । मिश्रित कृषि इस प्रदेश की विशेषता है।





भूमि उपयोग - इस प्रदेश की कुल भूमि का लगभग 46 प्रतिशत शुद्ध बोया गया क्षत्र है लेकिन क्षेत्रीय विभिन्नताएँ देखने को मिलती है। सर्वाधिक शद्ध बोया गया क्षेत्रफल टाक (66.5 प्रतिशत) तथा भरतपुर (63.4 प्रतिशत) में मिलता है क्योंकि यहां सिंचाई का सुविचार अच्छी उपलब्ध है । इन दोनों जिलों में वर्ष में दो फसलों के अन्तर्गत भी अधिक क्षेत्र मिलता है। कोटा में शुद्ध बोये गये क्षेत्रफल का औसत 59.3 प्रतिशत है लेकिन कोटा मैदान में सिंचार की सुविधाओं व उपजाऊ मिट्टियों के फलस्वरूप सघन खेती की जाती है।





फसलें - इस प्रदेश में रबी की फसलें अधिक महत्वपूर्ण है। चना-ज्वार बाजरा गहू की क्रम काफी लोकप्रिय है । जौ,तूर और तिलहन की फसलें भी इनके बाद अपना महत्व रखता और इनका उत्पादन भी अच्छा किया जाता है। चावल मक्का और गन्ना फसलों के उत्पादन पर इतना अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है । उत्पादन तथा महत्व की दृष्टि से गेहूं सभी फस म प्रमुख है । इसके अन्तर्गत बोया जाने वाला क्षेत्रफल बंदी में 30 प्रतिशत सवाई माधापुर 17 प्रतिशत, कोटा में 16 प्रतिशत भरतपुर व धौलपर में 13.5 प्रतिशत है। दालो मन महत्वपूर्ण है जो कल दालों के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्र के लगभग 27 प्रतिशत पर बाया हे इसका अत्यधिक उत्पादन सवाईमाधोपुर,बूंदी,कोटा.टोंक व झालावाड जिलों से प्राप्त कर हे । ज्वार, बाजरा कोटा (21 प्रतिशत), बूंदी व टोंक (18.7 प्रतिशत) में तिलहन फसल





भरतपुर,धौलपुर,कोटा व बूंदी में तथा जौ की फसल टोंक,सवाईमाधोपुर,बूंदी तथा भरतपुर में महत्वपूर्ण है।





सिंचाई - इस प्रदेश की अर्द्ध-शुष्क दशाओं के कारण कृषि कार्यों के लिए सिंचाई बड़ी आवश्यक है। शुद्ध बोये गये क्षेत्रफल का बड़ी मुश्किल से लगभग 14 प्रतिशत ही यह सुविधा प्राप्त कर पाता है। सबसे अधिक सिंचाई की सुविधाएँ भरतपुर में उपलब्ध हैं । सिंचाई के अन्तर्गत आने वाला क्षेत्रफल भरतपुर में 26.5 प्रतिशत टोंक में 15 प्रतिशत,सवाईमाधोपुर में 13 प्रतिशत, बूंदी में 12 प्रतिशत और कोटा में 10 प्रतिशत है। सिंचाई नहरों के द्वारा कोटा तथा बूंदी में कुओं के द्वारा कोटा, बूंदी तथा भरतपुर में तथा तालाबों के द्वारा भरतपुर सवाईमाधोपुर,टोंक, बूंदी और कोटा में की जाती है। सबसे अधिक महत्वपूर्ण सिंचाई योजना चम्बल घाटी परियोजना है।





पशुसम्पदा - चम्बल बेसिन प्रदेश में गौवंश में मेवात, रथ हरियाणा व यवाली नस्लें प्रमुख रूप से मिलती हैं। इस प्रदेश के भरतपुर व धौलपुर में मेवात नस्ल मिलती है । जो प्रजनकों द्वारा प्राकृतिक और मिट्टी की दशाओं के अनुकूल विकसित की गई हैं। भरतपुर व धौलपुर जिलों में पश्चिम भागों में चौपायों की रथ नस्ल तथा सवाईमाधोपुर व टोंक जिलों में इनकी हरियाणा नस्ल पाली जाती है। जबकि झालावाड़ व कोटा जिलों में मालवी नस्ल के चौपायें पाले जाते हैं। राजस्थान में कुल गौवंश (1988) का लगभग 24.68 प्रतिशत इस प्रदेश में मिलता है जिसमें से सबसे अधिक कोटा जिले में 7 प्रतिशत पाया जाता है । भैंसों की प्रसिद्ध नस्ल भर्राह सवाईमाधोपुर, उदयपुर, भरतपुर, धौलपुर, कोटा व बूंदी जिलों में मिलती है। यह भैंसे मुख्यतया दूध के लिए पाली जाती है राजस्थान की कुल भैंसों का लगभग 29.58 प्रतिशत इस प्रदेश में मिलता है जिनमें अकेला सवाईमाधोपुर जिला राज्य की कुल भैंसों का 7.19 प्रतिशत रखकर प्रथम स्थान है।





उद्योग धन्धे - चम्बल बेसिन औद्योगिक क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है। प्रदेश में कार्यशील । जनसंख्या का केवल 15.2 प्रतिशत ही उद्योगों में संलग्न है। कोटा इस प्रदेश में अकेला एक





ऐसा नागरिक केन्द्र है जो जम्बल परियोजना, थर्मल प्लांट तथा परमाणु विद्युतगृह आदि से विद्युत की सुविधा का लाभ प्राप्त कर रहा है तथा एक विकसित औद्योगिक शहर है। कोटा में मुख्य रूप से सूती वस्त्र उद्योग रासायनिक उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग तथा कई अन्य कुटीर उद्योग पाये जाते हैं। चीनी उद्योग, केशोरायपाटन (बूंदी) में,सीमेन्ट उद्योग लाखेरी (बून्दी) में, सवाईमाधोपर में कांच उद्योग, धौलपुर में खाद बनाने के कारखाने कोटा घोसुन्डा, सवाईमाधोपुर आदि में केन्द्रित है । वर्तमान में कई लघु व मध्यम उद्योग विकसित हुए हैं और बड़ी तेजी के साथ नवीन लाइसेंस दिये जाकर उन्हें शीघ्र स्थापित करने के लिए प्रोत्साहन भी दिया जा रहा है। इस प्रदेश में सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण उद्योग जैसे इस्ट्रमेन्टेशन लि.कोटा,रेलवे वैगन फैक्ट्री, भरतपुर, चमड़ा बनाने का कारखाना, टोंक तथा दी हार्ड टेक प्रिंसीजनग्लास फैक्ट्री धौलपुर आदि स्थापित किये गये हैं जिनके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में औद्योगिक विकास की गति तेज हुई है। इस प्रदेश में चीनी के कारखाने भरतपुर, कोटा व सवाई माधोपुर में कांच के कारखाने, सवाई माधोपर व बूंदी में तथा वनस्पति उद्योग के कोटा में स्थापित किये जाने की पर्याप्त सम्भावनाएँ हैं।


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