आहड़ सभ्यता का महत्व, आहड़ सभ्यता की भौगोलिक स्थिति


आहड की सभ्यता भी अन्य प्राचीन सभ्यताओं की भाँति नदियों की घाटी में ही विकसित यह सभ्यता बनास नदी की घाटी में विकसित हुई । यह सभ्यता चार हजार वर्ष पुरानी मानी की। यह सभ्यता भी राजस्थान की अत्यन्त प्राचीन एवं गौरवपूर्ण सभ्यता मानी जाती है।





India Govt Exam




आहड की भौगोलिक स्थिति - आहड़ अरावली पर्वत की दक्षिणी-पूर्वी ढाल पर स्थित मेवाड के इस प्रदेश को प्राचीनकाल में 'मेदपाटक' कहा जाता था। डॉ. गोपीनाथ शर्मा के अनसार इसका 10-11वीं शताब्दी का नाम आधारपुर या आधार दुर्ग था। बोलचाल की भाषा में इसे धूलकोट भी कहा जाता था। आहड़ कस्बा आहड़ नामक छोटी-सी नदी पर स्थित है। यह बनास नदी की सहायक नदी है।





आहड़ सभ्यता की जानकारी - आहड़ नामक कस्बे की खुदाई का कार्य 1953 में श्री अक्षय कीर्ति व्यास के नेतृत्व में शुरू किया गया। इसके बाद 1956 में यहाँ खुदाई का कार्य श्री रतनचन्द्र अग्रवाल के नेतृत्व में किया गया। रतनचन्द्र अग्रवाल ने आहड़ सभ्यता को एक विशिष्ट सभ्यता बताया है,जो ताम्र-युगीन थी। इसके पश्चात् 1961-62 में डॉ.एच.साँकलिया के नेतृत्व में खुदाई का काम शुरू हुआ। खुदाई से प्राप्त अवशेषों से सिद्ध होता है कि आहड़ दक्षिणी-पश्चिमी राजस्थान की सभ्यता का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। इस सभ्यता का क्षेत्र सीमित न होकर विस्तृत था । कच्छ की घाटी में स्थित सूरकोटड़ा नामक स्थान की खुदाई में जिस सभ्यता के अवशेष मिले हैं, वे भी आहड सभ्यता से मिलते-जुलते हैं। इससे सिद्ध होता है कि आहड़ सभ्यता कच्छ की घाटी तक फैली हई थी। गिलण्ड तथा भगवानदासपुरा से प्राप्त होने वाले अवशषों से ज्ञात होता है कि आहड सभ्यता का उत्तर-पूर्व तथा दक्षिण-पश्चिम में भी विस्तार हो चुका था। डॉ. दशरथ शर्मा का कथन है कि “आहड का जटिल तथा समृद्धशाली नागरिक जीवन निःसन्देह शताब्दियों के विकास का परिणाम था।"





पुरातत्व उपकरण - खुदाई में आहड की बस्तियों के कई स्तर मिले हैं। पहले स्तर में कुछ मिट्टी की दीवारें मिट्टी के बर्तनों के टकडे तथा पत्थरों के ढेर प्राप्त हुए हैं। दूसरे स्तर पर भी कुछ दीवारें तथा मिट्टी के बर्तनों के टुकड़ाम महा क बर्तनों के टकडे मिले हैं। तीसरे स्तर पर कछ अलंकत मिडो के बर्तन मिले हैं । ये बर्तन घरों में प्रयुक्त किया





पतन घरा में प्रयुक्त किये जाने वाले बर्तन थे। चौथे स्तर पर एक बर्तन से दो तांबे गाड़या प्राप्त हुई हैं। इस प्रकार इन स्तरों पर चार और बस्तियों के स्तर मिले हैं। ये सभी आठ स्तर,एक-दसरे स्तर पर बनते और बिगड़ते गए। आहड़ सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ-





कान - आहड़ निवासी पत्थर व धूप में सुखाई गई कच्ची ईंटों से मकानों का निर्माण पत्थरों का प्रयोग अधिक किया जाता था। नींव में शिष्ट नामक पत्थर शिष्ट पत्थर के टुकड़े कर उन्हें गारे से चिपका कर नींव में लगाया जाता था। मकान छोटे और बड़े दोनों ही होते थे। कमरे काफी बड़े होते थे। कुछ बड़े लम्बाई चौड़ाई 33 x 20 फीट तक देखी गई है। दीवारों पर मिट्टी का प्लास्तर था। दीवारों को सुन्दर व चमकीली बनाने की दृष्टि से चकमक पत्थर का चरा गारे में जाता था। मकानों की फर्श चिकनी काली मिट्टी से बनाई जाती थी। मकानों की को होती थीं। छत के निर्माण में बाँस और फूस का प्रयोग किया जाता था। इन छतों को बल्लियों द्वारा ऊपर उठा कर रखा जाता था,जो नींव के फर्श में गाड़ दी जाती थीं। बरे। विभक्त दीवारें भी मिली हैं। कमरों में बाँस की पड़दी बनाकर छोटे कमरों में बदल दिया था। पड़दी पर चिकनी मिट्टी चढ़ा कर टिकाऊ बनाया जाता था। मकानों की नालियों का पानी निकालने के लिए गड्ढे खोदे जाते थे तथा मिट्टी के पकाये गये घड़ों को एक-टयो बिठाकर पानी सोखने के गड्ढे (Soak Pits) बना दिये जाते थे, जिनमें गन्दा पानी गिरता रहता था। कुछ मकानों में दो या तीन चूल्हे मिले हैं। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि आइट। बड़े परिवारों के लिए भोजन की व्यवस्था थी और भोजन सामूहिक रूप से तैयार किया जाता था। चूल्हे भी मिट्टी से पुते हुए मिले हैं। चूल्हों के ऊपर आज की भाँति बर्तनों को टिकाने के लिए पत्थर भी जड़ दिए जाते थे। मकानों में रसोईघर की भी व्यवस्था थी और चूल्हे भी रसोईघर में बने हुए मिले हैं।





2. बर्तन - आहड़ के निवासी बर्तन बनाने की कला में निपुण थे। यहाँ से मिट्टी की कटोरियाँ,रकाबियाँ,तश्तरियाँ,प्याले,मटके,कलश आदि बड़ी संख्या में मिले हैं। साधारणतया इन बर्तनों को चाक पर बनाया जाता था। बर्तनों को सुन्दर बनाने के लिए उनका विभिन्न प्रकार के चित्रों से अलंकरण किया जाता था। आहड़ से लाल-काले रंग के अनेक बर्तन मिले हैं। इस प्रकार के बर्तनों का निचला भाग लाल तथा ऊपर का भाग काला होता था। ऐसे बर्तन तीन प्रकार के हैं-(1) सादे जिन पर किसी प्रकार की डिजाइन नहीं हैं, (2) जिन पर अन्दर व बाहर की ओर हल्की डिजाइनें बनी हैं,तथा (3) जिन पर बाहर की ओर गर्दन पर सफेद रंग से कई प्रकार की रेखाएँ तथा बिन्दु बने हुए हैं। इन बर्तनों को और अधिक सुन्दर बनाने की दृष्टि से विभिन्न चित्रों को चित्रित किया जाता था। इसके अतिरिक्त गहरे लाल रंग के बर्तन भी मिले हैं। इन बर्तनों की गर्दन तथा कन्धे विशेष रूप से अलंकृत किये जाते थे। ये बर्तन अन्य बर्तनों की अपेक्षा बड़े होते थे तथा वे विशेषकर अनाज रखने के लिए ही बनाये जाते थे। आहड़ की खुदाई में सम्पूर्ण काले, चितकबरे,स्लेटी रंग के, भूरे व लाल रंग के बर्तन भी मिले हैं। इन मिट्टी के बर्तनों के कन्धों पर विभिन्न प्रकार से अलंकरण किया जाता था।





डॉ. गोपीनाथ शर्मा का कथन है कि “आहड़ का कुम्भकार इस बात में निपुण दिखाई देता है कि बिना चित्रांकन के भी मिट्टी के बर्तन सुन्दर बनाये जा सकते हैं। काट कर, छील कर तथा उभार कर इन बर्तनों को आकर्षक बनाया जाता था तथा ऊपरी भागों पर पतली भीतर गड़ी हुई रेखा बना दी जाती थी,जिससे बर्तन में एक स्वाभाविक अलंकरण उत्पन्न हो जाता था। बैठक वाली तश्तरियाँ तथा पूजा में काम आने वाली धूपदानियाँ, ईरानी शैली की बनी हैं। जिनसे सिद्ध होता है कि 2000-1000 ई.पू.के काल में आहड़वासियों का ईरान से भी सम्बन्ध था। आहड़ से प्राप्त बर्तनों से ज्ञात होता है कि यहाँ बर्तन बनाने का व्यवसाय काफी विकसित था।"





3. मिट्टी के अन्य उपकरण - आहड़ की खुदाई से मिट्टी के अन्य उपकरण भी प्राप्त हुए हैं। इनमें निम्नलिखित वस्तुएँ उल्लेखनीय हैं





(i) पूजा की थालियाँ - आहड़ की खुदाई में पूजा की थालियाँ भी मिली हैं। ये थालियाँ गोल व चौकोर दोनों प्रकार की थीं। उनके बीच में दीपक रखने के लिए स्थान बने होते थे। पूजा की थालियों में नाग-नागिन व देवता भी मिट्टी के बने मिले हैं।





(ii) धातु गलाने के उपकरण - लौने-आहड़ की खुदाई में मिट्टी के अनेक खिलौने भी मिले हैं जिनमें मिटी





(ii) खिलौने - बैल तथा घोड़े उल्लेखनीय हैं।





दीपक-आहड़ में मिट्टी के 6 दीपक भी मिले हैं। गोलियाँ-आहड़ में मिट्टी की अनेक गोलियाँ भी प्राप्त हुई हैं। मानव आकृतियाँ-आहड़ की खुदाई में दो नारी-मूर्तियाँ तथा एक मर्ति परुष की मिली है।पहिये-आहड़ की खुदाई में मिट्टी के पहिये भी मिले हैं। इससे ज्ञात होता है कि की भाँति यहाँ भी माल ले जाने के लिए बैलगाड़ियों का प्रयोग किया जाता था।





4. पाषाणकालीन उपकरण - आहड़ की खुदाई में पाषाणकालीन उपकरण भी प्राप्त हए जिनमें रामसैकाश्म (chert) तथा चकमक प्रमुख हैं। आहड़वासी अपने मकानों की सवारों को सुदृढ़ तथा सुन्दर बनाने की दृष्टि से चकमक पत्थरों का प्रयोग करते थे। इन्हीं पत्थरों ने अपने आवश्यक औजार भी बनाते थे, जिनका उपयोग छीलने, छेद करने तथा काटने में किया जाता था। ये औजार गीली लकड़ी,चमड़े तथा हड्डियों को छीलने में काफी उपयोगी रहे होंगे।





5. हड्डियों से निर्मित उपकरण - आहड़ की खुदाई में हड्डियों से बने हुए उपकरण भी प्राप्त हुए हैं। इनमें सुई तथा सुरमा लगाने की सलाइयाँ उल्लेखनीय हैं।





6. ताँबे से निर्मित उपकरण - आहड़ से ताँबे की कुल्हाड़ियाँ, अंगूठियाँ, चूड़ियाँ, सुरमे की सलाइयाँ,चाकू तथा ताम्र कलाकृतियाँ मिली हैं। इसके अतिरिक्त ताँबे के पत्तर तथा ताँबे के टुकड़े भी मिले हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि आहड़वासी ताँबा गलाने तथा ताँबे के विभिन्न प्रकार के उपकरण बनाने की कला में निपुण थे। विद्वानों का मत है कि आहड़ उस समय ताँबे की वस्तुएं बनाने का एक प्रमुख केन्द्र था। सम्भवतः यह नगर उस युग का एक औद्योगिक नगर था तथा ताम्र-उद्योग यहाँ का एक प्रमुख व्यवसाय रहा होगा। प्रो. साँकलिया का मत है कि आहड़ में आकर बस्ती बसाने का एक कारण यहाँ ताँबे का मिलना भी रहा होगा, क्योंकि उस युग में तांबे का बहुत महत्त्व था।





7. मणियाँ एवं आभषण - आहडवासी कीमती पत्थरों जैसे गोमेद, स्फटिक आदि से साल माणया बनाते थे। इनका उपयोग आभषण बनाने गले में लटकाने आदि के लिए किया जाता था। इनका आकार गोल,चपटा,लम्बा,तिकोना, चतुकार गाल,चपटा,लम्बा, तिकोना,चतुष्कोणीय एवं षटकोणीय होता था। आहड़वासियों के आभषण अधिकांशतः पकी हुई मिट्टी के मणकों के थे, परन्तु कुछ नगा तथा मूल्यवान पत्थरों के भी थे। यहाँ दो प्रकार के मणके मिले हैं-(1) कीमती मणक, तथा (2) पकी हुई मिट्टी के मणके। मिट्टी के मणकों के बीच में छिद्र है तथा सीप,मूंगा तथा मूल्यवान पत्थ पत्थरों के मणके, तथा (2) पर मणकों पर रेखाओं द्वारा डिजाइन हरे,नीले,काले आदि कई रंगों में पाका प्रयोग करते थे जबकि मध्यम एवं निम्न व डिजाइनें बनी हई हैं। पत्थर के मणकों में भी बीच में छिद्र हैं। ये लाल. पद कई रंगों में पाये गए हैं। शायद धनी लोग कीमती पत्थर के बने हुए मणकों थ,जबकि मध्यम एवं निम्न वर्ग के लोग मिट्टी के मणकों का प्रयोग करते थे। अन्य उपकरण-आहड की खुदाई में कपड़ों पर छपाई करने के ठप्पे भी प्राप्त हुए हैं, चलता है कि यहाँ गाई और छपाई का व्यवसाय भी विकसित था। खुदाई में तौल प भी मिले हैं। यहाँ से प्राप्त अन्य उपकरणों में चमड़े के टुकड़े, मिट्टी के पूजा के जिनसे पता चलता है कि के बॉट व माप भी मिले है।पात्र,चूड़ियाँ, सिलबट्टे आदि उल्लेखनीय हैं। सिलबट्टों का निर्माण बलुए पत्थर और क्वार्टजार दोनों के ही बनाये जाते थे। पुराविदों के अनुसार इन सिलबट्टों का प्रयोग गेहूँ, ज्वार जैसे अन्न पीसने में किया जाता था।





9. कृषि - आहड़वासी कृषि से परिचित थे । खुदाई से प्राप्त बड़े-बड़े भाण्ड तथा अनाज पीसने के पत्थर सिद्ध करते हैं कि ये लोग अन्न का उत्पादन करते थे। एक बड़े कमरे में बड़ी-बड़ी भट्टियाँ मिली हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि यहाँ सामूहिक भोजन की व्यवस्था थी। कुछ विद्वानों का विचार है कि आहड़वासी चावल की खेती करना जानते थे। इस क्षेत्र में वर्षा अधिक होने तथा नदी पास में होने से सिंचाई की सुविधा से यह सिद्ध होता है कि यहाँ अनाज का बड़ी मात्रा में उत्पादन होता था।





10. भोजन, व्यवसाय एवं रहन-सहन - आहड़वासी अन्न को पकाकर खाते थे। आहड़ में एक विशाल कमरे में बड़ी-बड़ी भट्टियाँ मिली हैं, जिससे ज्ञात होता है कि यहाँ सामूहिक भोज और दावतें भी हुआ करती थीं। आहड़वासियों के मकानों के पास मछली,कछुआ, भैंसा,बकरा, हिरन, सुअर आदि जानवरों की हड्डियाँ मिली हैं। इस आधार पर कुछ पुराविदों ने यह विचार प्रकट किया है कि आहडवासी माँसाहारी थे। वे शिकार के शौकीन थे। वे मछलियाँ तथा कछुए पकड़ कर लाते थे तथा उन्हें खाते थे। आहड़ में रंगाई एवं छपाई का व्यवसाय उन्नत था। खुदाई में तौल के बाँट व माप मिले हैं, जिससे यहाँ व्यापार-वाणिज्य होने का पता चलता है। यहाँ ताँबा गलाने की भट्टियाँ भी मिली हैं।





11. मृतक - संस्कार-आहड़वासियों के मृतक-संस्कार के सम्बन्ध में हमें कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। सम्भवत: वे शवों को गाड़ते थे, जिनका सिर उत्तर की ओर तथा पाँव दक्षिण की ओर रखे जाते थे। शव के साथ उनके पहनने के आभूषण भी गाड़ दिये जाते थे।





12. खन्दकें - आहड की खुदाई में खन्दकें भी मिली हैं। इन खन्दकों से पता चलता है कि आहडवासी अपने मकानों का गन्दा पानी निकालने के लिए चक्रकूप का प्रयोग करते थे। कुछ खन्दकों में चूल्हे,आटा या मसाला पीसने के पत्थर भी मिले हैं।





13. निवासी - आहड़वासियों के पूर्वजों के विषय में विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वानों के अनुसार, वर्तमान यादव लोगों का जन्म-स्थान आहड़ था। कुछ विद्वानों के अनुसार आहड़वासी आर्यों की ही सन्तान थे। कुछ पुराविदों के मतानुसार वर्तमान भील ही आहड़वासियों के पूर्वज थे। परन्तु इस विषय में निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि आहड़ के निवासी कौन थे।





आहड़ सभ्यता का महत्त्व





आहड़ सभ्यता राजस्थान की अत्यन्त प्राचीन और गौरवपूर्ण सभ्यता है । इस सभ्यता के कारण ही राजस्थान भारत की प्राचीन सभ्यताओं में अपना प्रमुख स्थान बना सका है। आहड़वासी घुमक्कड़ जीवन व्यतीत न करके मकानों में रहते थे तथा एक सुव्यवस्थित जीवन व्यतीत करते थे। वे कृषि से परिचित थे तथा विभिन्न प्रकार के अनाज का उत्पादन करते थे। वे मिट्टी के बर्तन बनाने की कला में बड़े निपुण थे। वे बर्तनों को विभिन्न प्रकार के डिजाइनों से अलंकृत करते थे। आहड़ से ताँबे की कुल्हाड़ियाँ, चूड़ियाँ, ताम्र कलाकृतियाँ आदि प्राप्त हुई हैं। इससे पता चलता है कि आहड़ उस समय ताँबे की वस्तुएँ बनाने का एक प्रमुख केन्द्र था। आहड़ की सभ्यता का क्षेत्र भी काफी व्यापक था। इस सभ्यता का अनाव मवाड़ तक ही सीमित न रह कर गजरात व मालवा तक में फैला हआ था। इस प्रकार आहड़ का सभ्यता राजस्थान की प्राचीनतम एवं गौरवपूर्ण सभ्यताओं में गिनी जाती है।


Comments

Popular posts from this blog

SBI Online Account Opening Zero Balance, YONO SBI New Account opening Online form

State Bank Zero Balance Account Opening Online : घर बैठे SBI मे खोले अपने Zero Balance Account, ये है पूरी प्रक्रिया?

Rajasthan Board 8th Result 2023 Live: RBSE board 8th Class result 2023 on rajshaladarpan.nic.in